कुछ गुनगुने अहसास
मेरी साँसों की आँच में तप जाने दो
फिर देखेंगे
खुशबू में बसे ख़्वाब
मेरी पलकों के हिजाब में छिप जाने दो
फिर देखेंगे
पहले यकीं तो कर लूं, ऐसा भी कुछ हुआ है.
है खेल हवाओं का, या सच में तुमने छुआ है.
फ़िलहाल तो आँखों में सर्द आहों का धुंआ है.
हाथों का थोड़ा ताप
आँखों पर चुपचाप से मल जाने दो
फिर देखेंगे
ठहरी हुई यहीं पर, है कब से समय की कश्ती.
तुम तक पहुँच भी जाते, लहरों पर ग़र ये बहती.
चल चल कर चाहे रुकती, रुक रुक कर चाहे चलती.
फिर मोड़ हैं वही
बातें हैं अनकही, बस कह जाने दो
फिर देखेंगे
© S. Manasvi
Thursday, August 16, 2007
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